पिताओं और पुत्रों की

मेरे रक्त को बोलने दो
मेरे अति नज़दीकी रक्त के लिए
तुम्हारी धड़कनों की तरह
मस्तिष्क से पृथक, 
जो देता है दोनों दर्द और उपदेश
ऐसी है मेरी कविता
फागुन के पूनम की
ज्योत्स्ना सिक्त शब्दों से परिपूर्ण
क्योंकि मैं बसंत जानता हूँ
किशोरावस्था से
जिस दिन से बदल गई पवन
दक्षिणामुखी
उस दिन उड़ने लगी पत्तियाँ
बवंडर की तरह
हृदय के बचपन में
अजीब चुभन के बाद

<< पीछे : हठी आगे : माता >>

लेखक की कृतियाँ

विडियो
ऑडियो

अनुवादक की कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
साहित्यिक आलेख
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
अनूदित कहानी
अनूदित कविता
यात्रा-संस्मरण
रिपोर्ताज

विशेषांक में