पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
क्या पिता एक मज़ाक है?

कुछ दिन पहले, जब मैंने
डरावने समय से दूर रहने के
पीया रक्त-रंजित भँवर
तो पुनर्जीवित हो गई
सारी शातिर क़ब्र या लपलपाती आग। 
 
आज मैं इंद्रधनुषी वासना-ग्रस्त
और बहुमूल्य शब्दों और काल की धूल से उन्मादित
पुत्र जिसने काटकर फेंका माँ का सिर एक ओर
जमदग्नि पुत्र या सूर्य के उत्तराधिकारी की
क्या नहीं हेमलेट और राम-भ्राता में पुनरावृत्ति? 
 
हटा दिए सभी माताओं ने योग्यों को
दर्शाते औसत दर्जे का लाड़-प्यार
क्या पिता होते हैं महज़ मज़ाक? 
जो या तो करते हैं संघर्ष या रह जाते हैं नीरव
कुछ कलंकित, कुछ तुगलक
निष्कासित करते देश-प्रेमियों को
रखकर हाशिए पर अपनी आत्मा
कितनी बार खो गए लैंगिक भूमिका में आप, 
जो ले जाता आपको आध्यात्मिक ऊँचाई पर? 
क्या निर्दोष पुत्र या अरबों आहें? 

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