पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
समय का शरणार्थी

समय के शरणार्थी की जड़ें
निश्चिंत होकर
धँसती जा रही हैं
धुँधली-अँधेरी दोपहर की
क्षणभंगुर मिट्टी विदीर्ण कर। 
 
ऐसी दोपहर—जिसके कुंडल खुलते ही
होती है भोर
प्यारी-सी स्थिर स्मृति लिए
अबाधित, पर तेज़तर्रार
आग के जलते पहिए
पहला लियर और उसकी कॉर्डेलिया
मौन-सधे
भाग्य बींधते हैं
माताओं के जुलूसों का। 
रक्तरंजित माताएँ और कसाई
बन गई हैं पिशाच-पिशाचिनी
कुंती से द्रौपदी तक
शठ-पाप में स्वयं को निमग्न कर। 
 
मर चुकी है कॉर्डेलिया की माता
हो गई है कुंती पागल सदा के लिए
द्रौपदी ने लात मारी-स्वर्ग ले जाने वाली पहाड़ियों को
लियर, अपने बेटे के कानों में गुनगुनाओ
अपने सबसे छोटे लड़के कॉर्डेलिया को
सिंहासन आरूढ़ करो
शाश्वत राज्याभिषेक के लिए
एक मातृहीन राज्य के। 

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