पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
मैं पीने वाला

मैं हूँ पीने वाला
अलुप्ता का पिता
तुम्हारे जन्मदिन के उपहार
वह कवच जो मैंने सीने से फाड़ा
वे कुंडल जिसे मैंने जोश में अलग कर दिए
मेरा रक्ताक्त हृदय
मेरे फटे कर्ण और प्रकीर्ण किरणें
प्रतीक्षारत
श्वेद आर्द्र
तुम्हारी जय का
पुनःलिखित इतिहास
हावी न होने दे
लेखक की दुविधा
या मूर्ख अभिशाप
उनकी कायरतापूर्ण श्रद्धांजलि
नाटकीय अहंकार के लिए
क्या है वह भगवान? 
जो भय से लड़ता नहीं
शर्म से नहीं लिखता नहीं
उसने उपदेश दिया हमें
साष्टांग प्रणाम करने के लिए
क्या सच में उकसाते हैं भगवान? 
मेरे पुत्र, याद रखना, 
उसने किया प्रयास विरत करने का
मृत्युंजय के धर्मयुद्ध में रचा षडयंत्र
तुम्हारे पूर्वज
पौराणिक पिता
कर्ण, दाता
मेरे अनुयायी, 
मेरे दाता, 
महान धनुर्धर, 
स्वागतेय वर्षा, विद्युत पेय
पर मेरे प्रिय
लक्ष्य मत रखना कभी भी
वेश्या के स्वयंवर पर
तुम, मेरे पुत्र
सूर्य-कलश
तुमसे अलग नहीं होंगे
मेरे कवच कुंडल
तुम नहीं छोड़ेगे अकेले
दुर्योधन को आहत
मैं पी लूँगा
अभिशाप की मदिरा
 
मैं पलक झपकाऊँगा, 
पांडवों के तितर-बितर होने तक
कौन-सी कचहरी, कौन-सा वकील, 
मैं उड़ाऊँगा उनकी धज्जियाँ
अकेले धनुर्धर! 
जब तक तुम खोज नहीं लोगे
पिताओं के पिता
मेरे प्रिय
प्रकृति-पुत्र। 

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