पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
पुत्र से पिता

प्रिय पुत्र, 
सूर्य के कर्ण
पिता झुकते
या बैठते और चमकते नहीं हैं, 
वे दुनिया के लिए पैदा हुए हैं, 
हमेशा तुम्हें सशक्त बनाने के लिए। 
जन्मजात कवच की मज़बूत सुरक्षा
स्वर्गाभूषण कुंडल, 
एकाकी रातों की डरावनी कल्पना
जहाँ तुम हो, 
और चाहते हो
ईश्वर प्रदत्त
अँधेरी नदी और भयानक पृथ्वी
फिर अभी तक संघर्षरत
शैतानी दृष्टि, इंद्रील क्रोध, 
नारकीय मोड़
और पांडवों के लाक्षागृह से। 
पितृगण अकेले
हम छुटकारा पा लेंगे
हम ठीक हो जाएँगे
फैलाकर अपनी ढाल
स्वस्थ होंगे और मारेंगे। 
मैं हूँ लाजवंती नील-गगन
 
ध्यान रखना प्रिय
झूठ की दुनिया में, 
मैं अतीत के गौरव को लाने हेतु
युद्ध थोपूँगा, जिसने लूटा मेरा हृदय, 
पर तुम्हें शांति-पूर्वक शासन करना चाहिए
अपनी मूर्ख माताओं को दफ़न कर। 
यदि तुम लड़खड़ाते हो, 
और बदलना चाहते हो
तो मुझे यह अशिष्ट खेल खेलने दें। 
तुम्हारा यानी दुर्योधन का पिता, 
मैं ले लूँगा हमेशा के लिए
इसके बाद निर्वासन
या फिर, याद रखना
मेरे अपने बनो, 
तुम्हारा एकमात्र दाता। 

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