पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
मेरा चंद्रिल प्रेम

1.
प्रवाहित हुई अंतिम बार दक्षिणी पवन
मार्च महीना और अतीत काल
बोलते बहुत कम तुम्हारे नयन
गालों के गड्डे लजाते, देते आशीर्वाद
दिव्य-प्रेम या युवा उन्माद
अधोपतन या अनवरत अर्वाचीन
अप्रकाशित शांत-नील-वर्ण द्युतिमान
मेरा हवाई उत्प्लावन
उत्साही उम्र के उत्कट कगार
हमेशा तैरते हुए
योग्य प्रेम-मार्ग से बिना हुए विचलन। 
 
2. 
वैज्ञानिक प्रवचन
या लुप्त प्रज्ञा
उन्नत ज्ञान? 
बहुरूपिया प्रणय
मैं अप्रशिक्षित
मैं, बंधन रहित
प्रेम का कौतुक
नुकीला सर्वदा
इसलिए रहस्यमयी
प्रेम-पथ भी
बैंगनी चेहरे की
उत्सुक धड़कन
 
3. 
युवा कलाकार और मातृवत प्रेयसी
दोनों एक समान
नवजीवन की आत्मा, जीवन का कृपा-विधान
तुम हो अग्रदूत
उत्तप्त सूर्य की ज़मीन
हरी धाराओं की फिसलन
बारिश की बूँदें और जंगली-वन
हल्की फुसफुसाहट अजीब आदतन
सुंदरता, संस्कृति, गरिमा, शांत किरण
बढ़ते प्यार का मधुर तीर्थाटन
निर्निमेष नेत्र एवं शब्दहीन मुस्कान
मेरे भीतर विनम्रता
फिर भी मेरे पास उद्यमिता
मातृवत प्रेयसी
और पंखों का सुंदर चयन
 
4. 
यह सोचने के लिए कि
आप करते हो अनुभव
वह नहीं है करना अनुभव
और न ही, प्रेम का सिद्धांत
उसका उत्साह मदमस्त, 
इसलिए प्रेम नहीं नैराश्यजनित, 
अवतरित होंगे आप और रहेंगे पक्षपात रहित
 
5. 
मैं तुमसे करता था प्यार, 
मेरा सारा प्यार
रखकर अपने पास, 
मूल निवासियों के लिए, 
उत्कृष्ट कलाकारों के लिए, 
सर्वदा अभिनव, 
अति सशक्त, 
आप सभी के लिए
मुझे बनाया, 
किया मेरा विस्तार
पढ़ा मुझे जीवन भर, 
धुँधलका, अभी तक हुआ नहीं दूर
ये 'आप', मेरे मासूम रंगीन प्यार
अमूल्य, अद्वितीय, प्रकृति के देनदार। 

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