पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
गगन-प्रकृति

विस्तृत गगन, 
जहाँ सारे मतभेद भंजन, 
बादलों की शांत गर्जन
दर्द-निवारक सौंधी पवन
उसकी विशालता एक रहस्य महान
सभी मानव और उनकी रसायन
मायावी घूँघट, कुछ भी नहीं, लेकिन प्रशांत
तुम और तुम्हारी शाश्वत उपस्थिति
हृदयस्पर्शी अनुपस्थिति, अंतर्निहित चुभन, 
जो सब-कुछ ‘हो सकता था, होगा और होना चाहिए’ का नीरव कथन
फैला ऐसे नील गगन
धुँधले दृश्य, रहस्यवादी दर्पण
सुदूर अंतहीन नयन
पृथ्वी और स्वर्ग-दोनों मरणासन्न
तुम और मैं
और हमारा अपनापन
अतुलनीय द्युति, प्रकृति-युग्मन
फिर क्या? 
क्यों लड़खड़ाना? 
उसके बाद? 
व्यग्र स्नायु और भयभीत ख़ून
पवन की ढीली—रस्सी का उत्तोलन
गगन में छिद्रण और शमन
मैं और मेरा दूसरा अंग, शून्य-युग्मन
हे प्रियतम, 
मेरी आत्मा का एकमात्र नीड़
उड़ो, अपने सपनों को उड़ान, 
मेरे प्राण। 

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