पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
फिर से आना

तुम हो क्रुद्ध मेघांश
विस्फोटक प्रेरणा शक्ति की ढाल, 
फिर भी प्लावन के साथ हरियल
तुम्हारी प्रेमिका नदी बहलाती आजीवन, 
सूखा दिए तुम्हारे बचपन के दुलराते मैदान
अचानक हो गए शीत शांत
तुम्हारे दोपहर के रेतीले टीबे
हो गए धूमिल
यह नहीं तुम्हारा परित्याग
या तुम्हारी संयमित सावधानी


मैं गया हूँ थक
बहुत ज़्यादा ही, जो मैं चाहता था
तेज़ हवाएँ और तेज़ बारिश हो, 
मगर मेरी प्रकृति
एक संघर्ष के लिए शाश्वत संतति
गौरवशाली महिमा के लिए
ईमानदारी होती है शिकारी
जो सम्मान पर पलते है, 
उमंग में रँगकर
फिर भी यह वही पुरानी
नीले हृदय की तड़प, 
समय के साथ हो गई मूक
नए अपराध के साथ धुँधलापन
शब्दों और मनोदशाओं की रक्षा का शासन
तुम हो बूँद जनित मेघांश
टाइटन-विस्तार, लुप्त प्राय:
तुम हो धरती
मेरे जन्म को रोकने
सपनों पर पलने
एक अपंग आनंद हेतु
इसलिए मैं लौट आया
डूबने और तड़पने के लिए
तेरी बिखरी हुई गोद में। 

<< पीछे : उदासी आगे : पितृहीन >>

लेखक की कृतियाँ

विडियो
ऑडियो

अनुवादक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ऐतिहासिक
कार्यक्रम रिपोर्ट
अनूदित कहानी
अनूदित कविता
यात्रा-संस्मरण
रिपोर्ताज

विशेषांक में