पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
अंतर्द्वंद्व

 

मुझे देना होगा उत्तर
जाकर अनिश्चित भविष्य के गर्त
जिससे जुड़ा हमेशा मेरा अतीत, 
रहना होगा मुझे तत्पर
करने को बलिदान
विगत स्मृतियों के कोह की दास्तान
मर्माहत दोहरा प्रेम द्युतिमान
जय-पराजय के धुँधले चेहरे और
मेरा वर्तमान
मैं नहीं हूँ ज़्यादा महत्वाकांक्षी
और न ही मुझे चाहिए यश-कीर्ति, 
बल्कि हर समय अपने भीतर निमज्जित
चक्रीय कविता की तरह सुसज्जित। 
 
क्या कुरुश्रेष्ठ के पास है ऐसा स्थान? 
जो तैयार करता है
मृत्यु के बाद राज्याभिषेक का सिंहासन
और आने वाली पीढ़ी की रूपरेखा का आभूषण? 
 
जहाँ सूर्य-पुत्र है, वहाँ दिग्गज योद्धा है
जो चुँधिया देंगे तुम्हारा कवच
मेरे रहस्यमयी प्रेमी
मेरे देशभक्त, 
मेरे गौरवमयी भ्राता। 
 
जैसे-जैसे दिन साँस लेता है घनीभूत रात
या होता है इतिहास कोकुआ भय में परिवर्तित, 
तब हम बन जाएँगे दोनों
चमकते उज्ज्वल कट्टर राष्ट्रवादी, 
है ना? 
 
मैं तुम हूँ और तुम मैं
देखिए, आकाश ने गढ़ ली हैं अपनी आँखें
आइए, बदल दें हम झूठा इतिहास या मिथक
पुनर्स्थापित करें धार्मिक क्रंदन से परे महिमा
हस्तिनापुर युद्ध के आसन्न उन्नीसवें दिन
हम चाहते हैं कि
मित्र-शत्रु के ख़िलाफ़
कार्रवाई का वह हो अंतिम दिन। 

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