पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
तुम और मैं

 

एक, जिसने खोया बचपन
दूसरे ने जवानी
एक रहा तनावग्रस्त वृद्ध
दूसरे ने बीता दी जवानी
रस्सी खींचने में
एक, साफ़ करता था तीर
धनुर्विद्या सीखने के लिए
दूसरा, आग का गोला दागने में तत्पर। 
इस बार, दुर्योधन
मैं तुम्हें नहीं करूँगा निराश
साम्राज्य है तुम्हारी आस
मैं तुम्हें नहीं करूँगा निराश
मैं, कर्ण, तुम्हारा गुरु
दुर्योधन का पिता
मैं रथ से नीचे नहीं उतरूँगा
मेरे कवच-कुंडल वापस लूँगा, 
उन्हें कामी इंद्र को क्यों दूँगा उपहार? 
यह कैसा वादा? 
फिर से जीवन-दान क्यों? 
पांडवों को क्षमा क्यों? 
त्याग-बलिदान क्यों? 
माँ के अपराधों को माफ़ी? 
जिसने मुझे फेंक दिया
उसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी
मैं तुम्हें नीचे नहीं लाऊँगा
मैं, सूर्य-पुत्र, करूँगा तुम्हारा राज्याभिषेक, 
मैं, चंद्र को खिलाने वाला, छोड़ दूँगा तुम्हारे लिए सिंहासन
और जिएँगे तुम्हारी क़सम। 
किशोर पुत्र, युवा पिता
हम मृत्यु के लिए नहीं हुए उत्पन्न, 
मैं हूँ सारे राज्य
तुम हो प्रकाश स्तम्भ
मैं, रक्षक
तुम, शासक। 

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