पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
अभिमान

प्रकृति से जन्मे और
फेंके गए उस अँधेरी सरिता
जहाँ तुम्हारी कोमल कराह
सीखती धनुर्विद्या, सौंदर्यशास्त्र, 
नितांत एकांत, नितांत एकांत। 
 
तुम्हें मिले उपहार, 
प्रेम में सबसे महान
इसलिए अन्यत्र भेजे पितृ-आभूषण
और फिर किया उन्हें नमन। 
 
सीखने कलंकित अतीत
से पूरित भविष्य
तुम, प्रकृति-पुत्र। 
 
वे खेले भाषा-संग
देकर कचरे भरे प्रवचन
जातिवादी प्रलोभन
मिटाने अपनी मृगतृष्णा
फिर दाता कर्ण, 
हुए अहंकार परिपूर्ण! 
 
महा अभिमानी
दुर्योधन के दर्पण, 
बने हत्या के पात्र! 
और दूसरी तरफ़! 
अकेले देशद्रोही
संकेंद्रित विद्रोही
मुस्कुराते दानव! 
तुम मेरे पाठक
मेरे सूत्रधार
मेरे देहाती पटकथा लेखक
भोले-भाले विखंडनवादी
करते जीवनाध्ययन और
होते यथार्थवादी कथावाचक। 

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