पिताओं और पुत्रों की

पिताओं और पुत्रों की  (रचनाकार - प्रो. असीम पारही)

(अनुवादक: दिनेश कुमार माली )
हठी

सारे युगों में, सारी पृथ्वियाँ
धारण करती हैं यह सत्य
भुगतती हैं यह परिणाम
अभिमन्यु
नष्ट हुए और विकृत कर दिए गए
विषाक्तता से ठूँस कर
दोषियों को रिहा कर
निर्दोषता को चीरकर
उन पर प्रहार कर
तुम मेरी धड़कन, तुम मेरा जीवन, 
इस दुनिया के अलावा, 
अँधेरा पहने हुए अतीत ने
जगाया मुझे
चाँद के अंतिम तीर से पहले, 
सूरज की झुलसी मज्जा के बाद
वह यात्रा जो सकती थी
एक मिनट जिसने ठोकर खाई
अपने देश में प्रवेश के लिए
तुम्हारी व्यग्र मुस्कान
क्यों दें उन्हें पाँच गाँव? 
यह मेरा है, जो उन्होंने लूटा
यह तुम्हारा है, जो उन्होंने छीना
इसलिए हम हिलेंगे नहीं
न स्थान, न समय
तुम मेरा प्यार हो
तुम मेरी क़िस्मत हो
तुम मेरी धड़कन हो
तुम मेरे मित्र हो। 

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