प्याजी
निर्मल कुमार देपरिवार की माली हालत सुधारने के लिए पत्नी भी दुकान में अपने पति की सहायता करने लगी थी। दो बेटियों के पिता आलोक इधर कुछ ज़्यादा ही पीने लगे थे। पत्नी की उम्र तीस के क़रीब थी लेकिन समझदारी ख़ूब थी। अपनी बच्चियों की पढ़ाई और परवरिश के लिए घर के काम के साथ दुकान में भी पति की सहायता कर पत्नी ख़ुश थी।
शाम हो चली थी। दुकान के सामने एक बाइक रुकी, दो युवक उतरे। एक युवक ने आलोक की पत्नी से पान मसाला माँगा।
"नाश्ते की दुकान है, पान मसाला आदि नहीं है," आलोक की पत्नी ने कहा।
युवक का पूछने का अंदाज़ पत्नी को बुरा लगा। दुकान पर अकेली थी; पति सामने ही चाँपाकल से पानी लाने गए थे।
"और क्या क्या बेचती हो?" एक युवक ने उसे घूरते हुए पूछा।
"मैं इज़्ज़त नहीं बेचती बेहूदे, भागो यहाँ से नहीं तो प्याजी के साथ तुम्हें भी तल दूँगी," आलोक की पत्नी प्याजी निकालते हुए बोली।
दोनों मनचलों ने देर किए बग़ैर बाइक पर सवार होकर अपनी राह पकड़ ली।
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