ये मत कहना

01-04-2022

ये मत कहना

राजेश ’ललित’ (अंक: 202, अप्रैल प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मन से, 
बिल्कुल
मरा हुआ हूँ! 
ये मत कहना
डरा हुआ हूँ। 
 
हाँफ-हाँफ
कर चले ज़िन्दगी! 
ये मत कहना
थका हुआ हूँ। 
 
घिसट-घिसट कर, 
चले पाँव हैं! 
ये मत कहना
छाँव की ख़ातिर 
खड़ा हुआ हूँ। 
 
तपती रेत का
पथिक हूँ भैया! 
ये मत कहना
शोलों से डरा 
हुआ हूँ। 
 
डगर कठिन थी
टेढ़ी मेढ़ी। 
से मत कहना
मंज़िल से अब
भटक गया हूँ। 
 
संघर्षों के तूफ़ान 
बहुत थे। 
डटा रहा दीपक
की मानिंद; 
ये मत कहना
बुझा हुआ हूँ

4 टिप्पणियाँ

  • 2 Apr, 2022 10:28 AM

    आदरणीय शर्मा जी बहुत ही सुंदर कविता जो जीवन के सफर को रचनात्मक तरीके से कविता के जरिए व्यक्त किया

  • 1 Apr, 2022 05:00 PM

    उत्साह वर्धन के लिये बहुत आभार शैली जी एवं सरिता पाण्डेय जी।

  • संघर्षों का सफ़र चलने वाला ही जानता है। बहुत बढ़िया

  • 1 Apr, 2022 10:07 AM

    सुन्दर कविता

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