सूखी फ़सल से सपने

15-09-2022

सूखी फ़सल से सपने

राजेश ’ललित’ (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मैंने भी सपने
बोये थे
आँखों के नीचे
अपनी 
पलकों को बंद
भी किया
पर उगे कुछ ही
सपने
फ़सल सूख गई
पलकें फड़फड़ाती रहीं
सपने धुँधला गये; 
फिर मर गये सपने। 

1 टिप्पणियाँ

  • 14 Sep, 2022 06:12 AM

    आदरणीय राजेश ललित जी आपकी रचना दिल की गहराइयों को छू लेती हैं सराहना करने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं अति उत्तम ।

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