सर्दी और दोपहर

01-12-2022

सर्दी और दोपहर

राजेश ’ललित’ (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

सर्दी की सुबह, 
कब हुई दोपहर? 
पता ही न चला, 
घर के बाहर
खड़ा अलसाया अमलतास, 
लंबी हरी फलियाँ लटकी उदास; 
सफ़ेद केसरी फूलों से लदा
हार सिंगार, 
सूरज भी खोलता, 
घने कोहरे में, 
आँख की पीली/पुतली, 
फिर ओढ़ता /कोहरे की चादर, 
कुढ़ता, सो जाता; 
नहीं चहचहाई गौरैया, 
कब सुना गीत? 
कहाँ गाई मैना। 
चुग जाती दाना, 
चुप के से, 
आख़िर पेट तो सब
के लगा है। 

1 टिप्पणियाँ

  • 30 Nov, 2022 08:26 PM

    आदरणीय शर्मा जी

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