पोरस

राजेश ’ललित’ (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

जानता हूँ,
सिकंदर हो तुम;
तुम अपने जहाँ के।
पर हूँ,
पोरस मैं भी;
जीवन में अपने;
छोड़ूँगा नहीं,
युद्ध का मैदान,
अंत तक,
जब तक,
खड़ा न हो जाऊँ;
सामने तुम्हारे,
बराबर बराबर!

1 टिप्पणियाँ

  • 27 Dec, 2021 10:13 PM

    आदरणीय शर्मा जी

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