धान के खेत में; खड़ा बिजूका

01-09-2023

धान के खेत में; खड़ा बिजूका

राजेश ’ललित’ (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

धान के खेत 
में खड़ा बिजूका
कुछ ऊबा 
कुछ उखड़ा उखड़ा सा
 
पंछी आते 
दूर से देख के
डर जाते 
गगन उड़ जाते
कोई न उससे बातें करता
मन मसोस
बस ताकता रहता
धान के खेत में
खड़ा बिजूका
 
धान खड़ी
बस ऊँघती रहती
हवा जिधर बहती
उसके संग ही
सिर हिलाती
बीच खेत में
इक डंडे पर
बना रुआँसा
खड़ा बिजूका
 
बीच खेत में
एक टाँग पर
फूस बदन
ऊपर से कोट
मटके का सिर
ऊपर से टोप
गर्मी सर्दी और बरसात
कभी धान कभी बाजरा
सबके साथ
ही साथ निभाता
धान के खेत में
खड़ा बिजूका

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

चिन्तन
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
सांस्कृतिक आलेख
कविता - क्षणिका
स्मृति लेख
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
कविता - हाइकु
लघुकथा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में