सलीब 

राजेश ’ललित’ (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

हर दिन आते हो, 
सत्य की सज़ा है, 
हर बार फिर कील
ठोक जाते हो, 
 
मैं नहीं कोई मसीहा, 
कहीं का, 
तुम फिर भी मुझे, 
सलीब पर टाँग जाते हो, 
 
सत्य बोलोगे, 
पाओगे एक कील, 
हर बार तुम, 
सत्य से गिरा रक्त, 
पी कर जाते हो। 
 
बिक रही हैं, 
झूठ की सलीबें भी, 
सत्य की बता उन्हें, 
तुम बेच जाते हो। 

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