दर्द की बरखा 

01-11-2025

दर्द की बरखा 

राजेश ’ललित’ (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)



सावन के बादलों सा, 
दर्द, 
आवारा बादलों सा, 
बेचैन, 
उमड़ घुमड़ करता, 
क्यों, 
बस कराह उठा, 
और, 
आँसू जैसे बरखा, 
की पहली बूँद सा, 
टपका, 
ताप धरती का, बेशक, 
कम हुआ होगा, 
मेरे दर्द की कसक, 
कुछ कम हुई क्या? 
अथवा, 
रह रह कर फिर उठता, 
इक हूक सा, 
कौंध जाता मन, 
डर डर कर रह जाता, 
यह दर्द ही सालता, 
अब दर्द कौन है पालता, 
हमने पाल रखे हैं! 
हिम्मत है तो, 
आप भी पाल कर दिखायें, 
हाँ, 
यह जो अनायास, 
जो दर्द की बूँद बरसी है, 
वह, 
न कर सकी कम, 
ताप धरती का, 
न दर्द मन का। 

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