सपने बुन लो

01-08-2024

सपने बुन लो

राजेश ’ललित’ (अंक: 258, अगस्त प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

सपने आते हैं, 
तो देखते हैं, 
जब नींद गहरी 
आती है, 
तो सपने नहीं आते, 
तो सपने नहीं देखते। 
कभी दिन में भी 
देखते थे, 
मनभावन सपने, 
अब रात को आते हैं, 
कभी कभी सपने, 
कभी सुहावने, 
कभी डरावने, 
सपने। 
 
अधिकतर सपने, 
याद नहीं रहते, 
जो याद रहते हैं, 
वो पूरे नहीं होते। 
सपने तो सपने 
होते हैं, 
क्या पूरे,? 
क्या अधूरे? 
 
जो पूरे हो, 
वो सपने नहीं, 
हक़ीक़त, यथार्थ 
बन जीवन, 
में उतर जाते हैं 
ये हसीन सपने, 
महीन सपने, 
पूरे नहीं तो, 
सपने; सपने ही रह 
जाते हैं। 
 
सपने बुन लो 
सपने चुन लो, 
ध्यान देना, 
जब सपने बुनो, 
तो उसमें, 
छेद न हो, 
हे जुलाहे, 
अपनी आँख में सपना, 
मज़बूत ही बुनना, 
 
सपना चुनो, 
तो कोई भेद न करना, 
अच्छा हो, 
या बुरा, 
आँखों में 
समान रूप से धरना, 
पहले चुनो तो सही, 
ग़लत न चुनना। 
 
यदि आते हैं, 
तो देखते हैं सपने, 
नहीं आयेंगे, 
तो कैसे सपने? 
 
चलो रात बहुत हो गई, 
अब सो जाओ, 
आयें तो देख लेना 
सपने। 
नहीं आएँ, 
तो सुबह समय से
उठ जाना, 
बहुत काम करने हैं। 

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