मम्मी, इंडिया और मैं
राजेश ’ललित’
चलें, इंडिया चलें,
कुछ दिन चल,
मम्मी पापा से,
मिल आते हैं,
तुम्हारे मदर फ़ादर से,
भी मिल आऐंगे,
बच्चे भी जाकर,
इंडिया घूम आयेंगे,
अपना कल्चर भी,
जान जाएँगे,
दादा-दादी, नाना-नानी,
मिल आयेंगे,
बेबी, तुम तैयारी
शुरू करो,
दिसम्बर के सैकेंड वीक में जायेंगे,
टिकट बुक हैं,
इंडिया में होटल,
भी बुक हैं,
बस मम्मी पापा का,
फोन चुप है,
भगवान करे,
सब ठीक हो,
अब बुढ़ापा है,
कुछ न कुछ,
लगा होगा,
मॉम, इंडिया कब?
रेयान ने पूछा तब,
जैज़, कीप क्वाइट,
वी शैल गो आन फ़्लाइट,
राईट,
नाओ मूव,
फ़्लाइट लैंड हुई,
बच्चों को बहुत
ख़ुशी हुई,
दादा-दादी,
नाना-नानी,
कहाँ होंगे?
मम्मी पापा,
अपना घर,
यू एस, जाने से पहले,
बेच आया,
चलो पहले,
नाना-नानी,
से मिलते हैं,
मामा-मामी,
से मिलते हैं,
दादू पता नहीं,
कहीं तीर्थ यात्रा,
पर चले गए होंगे,
तब तक होटल में रुकेंगे,
नानकों से मिल कर मौज करेंगे,
तब तक मैं दादा-दादी का पता कर लूँगा,
मम्मी तेरी याद आ रही,
कहाँ ढूँढ़े, कहाँ रह रही,
पड़ोसी से पता किया,
कहाँ गये मेरे मात पिता,
कहीं आश्रम वाले,
ने उन्हें संरक्षण दिया,
ढूँढ़ा बहुत तो,
आश्रम मिला,
मात-पिता का,
नाम दिया,
जवाब आया,
पिता तो नहीं रहे,
जब तक रहे,
बेटे को याद कर,
रोते रहे,
माँ को भी लकवा,
मार गया,
उनकी ज़बान,
लड़खड़ा रही,
आँख में आँसू लिए
कुछ कहने को,
असमर्थ पा रही,
मैं न रो पाया,
न हँस पाया,
मुझे लगा,
जो मैंने कमाया,
सब गँवा आया,
माँ को अस्पताल,
में भर्ती करवा,
मैंने बच्चों से पूछा,
कैसा लगा इंडिया?
बच्चों ने कहा,
आप नहीं थे?
तो कैसा इंडिया?
कैसा अमेरिका?
मैं पापा को याद कर,
फूट फूट कर रोया।
बच्चे पूछते रहे,
डैडी क्या हुआ?
मेरी आँखों में सिवाय,
प्रश्नों के, जो आँसुओं में,
तैर रहे थे?
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-
आदरणीय श्री सुमन कुमार घई जी, सादर नमन, आप का हार्दिक आभार एवं धन्यवाद मेरी कविता 'मम्मी , इंडिया और मैं ' को साहित्य कुञ्ज'के दिसम्बर प्रथम अंक में स्थान दिया। कृतज्ञ लेखक, राजेश ललित शर्मा
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