सूखा बसंत

01-03-2024

सूखा बसंत

राजेश ’ललित’ (अंक: 248, मार्च प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

आया तो था
बसंत इस बार भी
पर, नहीं आयी
आम की बौर
इस बार
पत्ते भी
सूखे रहे 
पतझड़ के बाद
बसंत नहीं ला सका
हरियाली
पेड़ों पर
इस बार
नहीं खिली
गेहूँ की बाली
इस बार
सरसों के पीले
फूल दुबके रहे
भीतर ही भीतर
फूलों पर नहीं
छाई बहार
मुरझाई सी रहीं
कलियाँ
उगे फूल सूखे से
नहीं लहराई
नवयौवना की
रंग बिरंगी चुनरी
आँखें सूनी रहीं
बाट जोहती रहीं
पिया परदेसी
ही रहा
फिर इस बार
हमने मार दिया
बसंत सदा के लिए। 

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