ज्ञान और ज्ञानी
राजेश ’ललित’
ज्ञान अर्थात् जानना। बालपन से ही जिज्ञासा ही हमारे हर वस्तु के बारे में जानने की इच्छा हिलोरें मारती है। बच्चा अग्नि की ज्योति और ज्वाला में हाथ इसलिए जलाता है कि वह नाचती लाल, नीले और पीले रंग की लहलहाती को छू कर अपनी इच्छा शांत करना चाहता है। जब हाथ जल जाता है तो जानता है ज्ञान प्राप्त करने के लिए अनुभव की अग्नि में झुलसना पड़ता है।
अनुभव ही ज्ञान का प्रथम सोपान है; समाज और लोग इस ज्ञान को समृद्ध करते हैं। भारतीय परंपराओं में श्रुति और स्मृति के द्वारा ज्ञान को अगली पीढ़ी तक सौंपा जाता था। श्रुति अर्थात् गुरु द्वारा अपने शिष्यों को अपना समुचित अर्जित ज्ञान बता कर, सुना कर उनको कंठस्थ करवाना और उस ज्ञान को जीवन में उपयोग करके सरल और सहज बनाना ही ज्ञान का उद्देश्य है। यदि आप सहज और सरल हैं तो समाज भी सहज और निर्बाध रूप से प्रवाहित होता रहेगा।
जब से भाषा और लेखन का आविष्कार हुआ तब से ज्ञान पुस्तकों में संकलित होना शुरू हुआ। आज जीवन के प्रत्येक पहलू, विश्व में हर विषय, पर ज्ञान उपलब्ध है आज इंटरनेट के ज़माने में तो पुस्तकें भी अपना महत्त्व खो चुकी हैं। गूगल पर अपनी जिज्ञासा लिखिए अथवा कहिए, गूगल तुरंत अपना हल लेकर आपके सामने है। अब यह आप पर निर्भर है कि आप उस ज्ञान का उपयोग करते हैं अथवा दुरुपयोग।
व्यक्ति के साथ समस्या यह है कि जब भी उसे ज्ञान की सर्वाधिक आवश्यकता होती है तो सारा ज्ञान होते हुए भी वह अज्ञान के अंधकार में प्रकाश ढूँढ़ने लगता है। कहने का अर्थ यह है कि निजी समस्या को कोई अपने अनुभव और परिवार के सहयोग से हल कर सकता है उसके लिए हम पुस्तकें अथवा किसी ज्ञानी का मुँह ताकने लगते हैं।
हम स्वयं पर कम और दूसरे के ज्ञान पर अधिक विश्वास करते हैं। सारा अर्जित ज्ञान धरा रह जाता है; हम फिर किसी पुस्तक में झाँकते हैं कि हमारी समस्या सुलझ जाती तो आपकी जय जयकार।
ज्ञान की कोई सीमा नहीं है; लाखों, करोड़ों वर्षों के अर्जित ज्ञान होने के बाद भी हम की विषयों में अज्ञानी हैं और बहुत से रहस्य अनसुलझे हैं। वास्तव में हमारा ज्ञान सागर में पानी की बूँद के परमाणु के करोड़ों भाग से भी कम है। अभी भी हम प्रकृति के बहुत से रहस्यों से अनभिज्ञ हैं। अतः ज्ञान का अभिमान कभी न करें। केवल परमपिता परमात्मा ही सर्वज्ञ हैं।
1 टिप्पणियाँ
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आदरणीय राजेश "ललित" शर्मा जीआज के युग में विद्यार्थियों का गूगल पर निर्भरता एवं ज्ञान को कंठस्थ ना करना बड़े ही रचनात्मक एवं ज्ञानवर्धक रूप में उल्लेख किया है आप हमारा ऐसे ही मार्गदर्शन करते रहिए आदर सहित धन्यवाद
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