बहुत दिन हुए

15-02-2025

बहुत दिन हुए

राजेश ’ललित’ (अंक: 271, फरवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बहुत दिन हुए, 
किसी को मेरा नाम बुलाये, 
कोई कहे तो सही, ओए! 
 
बहुत दिन हुए, 
किसी को मेरा दरवाज़ा, 
खटखटाये, 
और कभी तो डाकिया, 
कोई चिट्ठी ही ले आये। 
 
बहुत दिन हुए, 
किसी ऐसे को देखे, 
मन उल्लसित हो, 
चौंके। 
 
बहुत दिन हुए, 
किसी अपने से, 
बेमतलब बतियाये, 
गपशप लड़ाये, 
यादें दोहराये, 
ठहाके लगाये। 
 
आता है कोई, 
कभी कभी, 
कोई अजनबी, 
किसी का पता पूछते, 
बस सिर हिलाते, 
चले जाते। 
 
भूला भटका, 
पता है मेरा, 
दरवाज़ा, 
अब इंतज़ार ख़त्म है, 
किसी के आने का, 
किसी के जाने का, 
आँखें बंद कर, 
मुँह ढाँप कर सो जा, 
फिर कोई सपना आये, 
मुझे नाम लेकर पुकारे।

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