झुर्रियाँ
राजेश ’ललित’
झुर्री पर झुर्री,
चढ़ रही है,
उम्र की चुग़ली
लगा रही है।
हर झुर्री की अलग कहानी,
कई समस्याओं,
की परेशानी,
बढ़ती उम्र है,
सब सह रही है।
बाल उड़े,
फिर गाल धँसे,
त्यौरियाँ बढ़ी-चढ़ी
सी रहतीं,
किससे कहें
अपनी परेशानी,
ज़ुबाँ चुप है,
फिर भी बहुत कुछ,
कह रही है।
आँखें नींद से,
बोझिल हो गईं,
सपने टूटे,
आँसू बहते,
बिखरे सपने,
समेट रही है।
रात को खाँसी,
सुबह का ताप,
हाथ काँपते,
दवा भी बार बार,
गिर रही है।
बढ़ती उम्र कुछ
कह रही है
हर दिन एक,
झुर्री बढ़ रही है।
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