भीष्म की शब्द शैय्या

01-10-2024

भीष्म की शब्द शैय्या

राजेश ’ललित’ (अंक: 262, अक्टूबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

शब्दों से बिंधे
रहे
पर नहीं हुए
भीष्म पितामह
इच्छा मृत्यु
नहीं हुई
न ही कोई
कृष्ण का
उपदेश हुआ
न ही वो अर्जुन
आया
जिसने बींध दिया
बाणों से
प्रतीक्षा-रत हूँ। 
 
शब्दों की
शर शैय्या
मन पर टिकाये
तड़प रहा मस्तिष्क में
चुभ रहे
पता नहीं कब तक? 
रहेगा
महाभारत अब भी
जारी है
दुर्योधनों की भीड़ है
आरोप है
उनका साथी हूँ
मन में बेशक
पांडव बसे हैं
कृष्ण न जाने
कैसी लीला
रच रहे? 
बस दूर खड़े
मुस्कुरा रहे
आपको भी स्मरण रहे
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

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