अज्ञान 

15-01-2025

अज्ञान 

राजेश ’ललित’ (अंक: 269, जनवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

चर्चा अज्ञान की करते हैं। दुनिया ज्ञान का गुणगान करते हुए नहीं थकती है। परन्तु यदि अज्ञान ही नहीं होता तो ज्ञान के महत्त्व को कैसे पहचानेंगे? 

अज्ञान को लेकर एक चर्चा करते हैं शायद जो पहले किसी ने नहीं की! 

हम पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि अज्ञान है क्या? जब हमें इस संसार में कोई जानकारी नहीं है, तो हमारे मुँह से अनायास निकलता है, “कितना बुद्धू इतना भी नहीं जानता है? अनपढ़ है, गँवार है।” क्या गाँव का निवासी होना ही गँवार अर्थात्‌ सभ्यता, संस्कृति और ज्ञान से दूर व्यक्ति? अनपढ़ अर्थात्‌ शिक्षा विहीन और यहाँ तक की सामान्य ज्ञान से भी दूर। तो क्या गँवार, अनपढ़ और बुद्धू लोग औरों से अलग एक समाज है? 

जीवन के लिए ज्ञान इतना आवश्यक है! 

नहीं, बिल्कुल भी नहीं क्योंकि आज भी दुनिया में करोड़ों लोग अपने ज्ञान से अनभिज्ञ हैं, परन्तु वे आज भी सफल जीवन व्यतीत कर रहे है। अफ़्रीका में, अमेज़न नदी के निकट के बीहड़ जंगलों में ऐसे आदिवासी क़बीले रहते हैं जो केवल प्राकृतिक अवस्था में रहते हैं। उनको जंगल से बाहर की दुनिया से कोई वास्ता नहीं है। वे केवल प्रकृति के द्वारा दी हुई वस्तुएँ ही खाते हैं और काम में लाते हैं। बाहर की दुनिया से यदि कोई आ जाएगा तो वे लोग उसे मार डालते हैं। वे मानव जीवन के प्रागैतिहासिक काल से ही ऐसी अवस्था में रहते हैं और ख़ुश हैं। उनके लिए ज्ञान का अर्थ केवल प्रकृति है और आधुनिकता से उनका लेना-देना नहीं है। 

चलो आधुनिक समाज में चलते हैं। आपसे एक प्रश्न पूछते हैं आपको सबसे प्यारा इंसान कौन लगता है? जब तक आप सोचें मैं एक जवाब देता हूँ शायद आप उससे सहमत हों; और वह जवाब है वह नन्हा बच्चा जो दो महीने से दो साल के बीच का हो। उसे आधुनिक ज्ञान कितना आता है; उत्तर है बिल्कुल नहीं। उसकी निश्च्छल मुस्कान को देखकर आप उसे गोद में लेकर स्वयं भी मुस्कराने लगते हैं। उस बच्चे को न विज्ञान को जानना है और न किसी धर्म की गहरी आध्यात्मिक बातों को। वह अपनी मस्ती में ख़ुश है। वह न कुछ बोल सकता है, न किसी बात का जवाब दे सकता है। 

वह अनजान और अज्ञान की दुनिया में मस्त है। 

अथवा आप उस महाज्ञानी को चाहेंगे जो जितना मर्ज़ी सरल एवं सौम्य हो परन्तु वह सहजता और सरलता उन आदिवासियों से और उस नन्हे बच्चे से कभी भी नैसर्गिक और प्राकृतिक नहीं हो सकती उसमें कुछ न कुछ बनावटी होगा

ज़रा ज्ञान की बात भी कर लें। हमें अर्थात्‌ मानवता में जब से आधुनिक विज्ञान ने दख़लअंदाजी शुरू की है, हम उतने ही प्रदूषित होते चले गये। वाहनों ने हमें क्या दिया; प्रदूषण और दुर्घटनाएँ। बिजली ने हमें क्या-क्या दिया जिसका करंट हर रोज़ कई जानें ले लेता है। हम हर चीज़ के लिए बिजली पर निर्भर हो गये हैं। ज़रा देर के लिए बिजली चली जाए तो बेचैन हो जाते हैं। बिजली उत्पादन में प्रयोग किया जाने वाला ईंधन चाहे कोयला हो और चाहे डैम से गिरता पानी, अथवा परमाणु ईंधन; सबके सब पृथ्वी को प्रदूषित करके ही प्राप्त किए जाते हैं। हम सुविधाओं के इतने आदी हो गए हैं कि हम आलस्य का जीवन जीने लगे हैं और शारीरिक गतिविधियों के  लिए भी हम जिम और अन्य बनावटी वस्तुओं पर निर्भर हो गये हैं। 

आज प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण केवल ज्ञान ही है। यही हाल धार्मिक ज्ञान का भी है। जिस धर्म को देखो दूसरे धर्म की अलोचना करता नज़र आता है। ये कैसे धर्म हैं जो आपस में वैमनस्य फैलाएँ। घृणा और मनमुटाव से धर्म का कौन सा उद्देश्य पूरा होता है? 

हम प्रकृति के जितना निकट रहेंगे उतने ही अधिक सरल और सहज रहेंगे। कोयल का कूकना, गौरैया का चहचहाना और कबूतर की गुटर गूँ भी अच्छी लगती है। कुत्ते को वफ़ादारी की वजह से पालते हैं। गाय हमारी आधी आवश्यकताएँ पूरी कर देती हैं। जब हम बैलगाड़ी में यात्रा करते थे तो कितनी दुर्घटनाएँ होती थीं। समय ज़रूर ज़्यादा लगता था परन्तु जीवन ज़्यादा ज़रूरी है कि समय। यदि शहरों में वर्ष भर वायु साँस लेने के लायक़ न हो तो उस शहर में रहने क्या लाभ? जीवन दस वर्ष तक कम हो जाता है। 

ज्ञान अथवा अज्ञान में से कौन बेहतर है फ़ैसला आपको करना है। 

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