दिल्ली की हवा 

15-06-2025

दिल्ली की हवा 

राजेश ’ललित’ (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

दिल्ली की हवा, 
कभी होती थी, 
साफ़़, सुथरी, अच्छी, 
मंद-मंद, बहती। 
 
दिल्ली की हवा, 
जो पहले थी, जैसी, 
नहीं रही, साफ़, सुथरी 
अब बिगड़ गई। 
 
अब हवा धूल, मिट्टी, 
संग घूमने लगी, 
लोगों की साँसों में, 
घुलने लगी। 
 
आजकल वह, 
धुएँ संग दिखने लगी, 
पहले निडर होकर बहती, 
थी अकेली, 
अब डराने लगी। 
 
पहले बिगड़ती, 
कुछ दिन, 
सर्दियों में, 
अब गर्मियों में भी, 
बिगड़ने लगी। 
 
क्या करे, बेचारी, 
जंगल कटे, 
कारख़ाने लगे, 
सड़कों पर वाहन भगे, 
कुछ न कर पाई, 
बस गई दिन दिन 
बिगड़ती। 
 
दिल्ली की हवा, 
कुछ ऐसी बिगड़ी, 
समाज की नस नस में, 
चला गया हर रस जीवन का, 
लोभ क्रोध में भस्म हो गये, 
दिल्ली की ऐसी हवा बिगड़ी। 

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