यादें

राजेश ’ललित’ (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

कुछ दिन पहले
घर गया था
बहुत दिनों के बाद
कुछ यादें पड़ीं थी
सूनी सूनी
ले आऊँगा
समेट कर उनको
मन को कभी
हल्का कर लूँगा
याद कर उनको
 
यादों को कुरेद रहा था
कुछ यादें भस्म हो गईं
कुछ यादें मिट गई थीं 
मिटा दी गई थीं
कुछ यादें दबी रह गईं
ख़ूब कुरेदा
नहीं निकलीं
जड़ें गहरी हैं
उभर आयेंगी
समय समय की
बात है यारो
 
कुछ यादों पर दरार
पड़ गई
कुछ यादें उघड़ गई थीं
कुछ यादें बिखर गई थीं
वे सब इधर उधर
पड़ीं थी
देख उनकी यह दशा
मन रुआँसा
हो आया
मन भर आया
थक कर ख़ाली हाथ
मसल कर
बाहर निकल आया
वहाँ भी एक याद मिली
थोड़ा सँभला मन
पर यह याद
तो गूँगी निकली
थोड़ा सा जो सँभला था
मन मसोस कर
चल पड़ा फिर
अब किसी से आस नहीं थी

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