एक खिलौना दिला दो माँ 

15-05-2025

एक खिलौना दिला दो माँ 

राजेश ’ललित’ (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 
माँ, 
दिल करता है, 
मैं भी खेलूँ, 
गुड्डे, गुड़ियों संग
एक खिलौना, 
दिला दो माँ, 
 
वो रबड़ की गेंद, 
फूला गुब्बारा, 
घूमता लट्टू, 
उस भैया से, 
दिला दो माँ, 
 
भूखी आँखें, 
सूखी आँतें 
कब तक पानी, 
से भूख मिटाऊँ, 
कोई बासी भात खिला दो माँ, 
 
मन करता है, 
मैं भी खेलूँ, 
यारों के संग, 
मैं भी टहलूँ, 
सुथरे कपड़े, 
पहना दो माँ, 
 
होंठों पर मेरे, 
सजे बाँसुरी, 
मैं बजाऊँ, 
सात सुरी, 
एक मोर पंख, 
सजा दो माँ, 
 
मैं भी खाऊँ, 
माखन मिश्री, 
मित्रों संग, 
फोड़ूँ मटकी, 
एक हंडिया, 
लटका दो माँ, 
 
कब तक डोलूँ, 
गली गली मैं, 
कब तक भटकूँ, 
एक रोटी को, 
बस्ता मुझे दिला दो माँ!  
 
आँखों में तेरी, 
नींद कहाँ है? 
तेरी गोद में सिर 
रखा है, 
एक सपना, 
मुझे दिखा दो माँ। 

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