बरखा बारंबार

15-09-2024

बरखा बारंबार

राजेश ’ललित’ (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

फिर से काले बादल 
घिर घिर आए 
फिर से काले बादल
आपस में टकराए 
बिजली कड़की 
बिजली चमकी 
आँखें चौंधियाईं
कौन आया? 
चपेट में 
सड़क किनारे 
या खेत में 
 
फिर से काले बादल 
घिर घिर आए। 
 
काले बादल घिर घिर आए 
सड़कों पर गड्ढे गहराये
खेतों की मेढ़ टूटीं 
किसी की मोटरसाइकिल डूबी
किसी भैंस बकरी 
बह गईं 
 
फिर से काले बादल घिर घिर आए 
झोंपड़ी की छत से 
आँसू टपके
माँ ने सूखा कोना ढूँढ़ा
बच्चे बने गठरी 
दोनों हाथ घुटनों 
में दबे हैं 
घुटनों तक पानी में डूबी
जैसे तैसे बच्चों का
बोझ सँभाले
टूटी खटिया भी ठिठुरी
 
फिर से काले बादल घिर घिर आए
 
गलियाँ गलियाँ 
बहती नदियाँ 
नाव काग़ज़ 
की हिचकोले खाये
बादल भी रोये 
जी भर कर 
जब काग़ज़ की 
नाव डुबोये
 
फिर से काले बादल 
घिर घिर आए 

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