एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
चाइल्ड कस्टडी 

 

कौन यह जानता था 
लज़्ज़त के लम्हों में 
मेरे वुजूद में 
औलाद का बीज बोने वाला 
एक दिन मेरी झोली में, 
मेरी नसों से ख़ून भींचकर 
ज़िन्दगी का लुत्फ़ लेगा 
मेरे ही वुजूद का हिस्सा 
मुझसे छीनकर अलग किया जायेगा 
दर्द की इन्तहा से गुज़रकर 
जो जीवन मैंने जिया है 
अदालत के कटघरे में खड़े होकर 
फ़ैसला सुनने के लिये 
मुझे अपने कान पराये करने पड़ेंगे 
जनम से मुझे बताया गया था कि 
अल्लाह की नाफ़रमानी करने पर 
अज़ाब टूट पड़ेंगे 
क़ब्र इतनी संकीर्ण बन जायेगी 
जिस्म की हड्डियाँ भी चटक जायेंगी 
बिच्छू, साँप, बलायें जिस्म से चिपके होंगे 
मर्द की नाफ़रमानी के एवज़ 
बच्चे को बिना देखे 
कितने सूरज बुझ गए हैं 
ममता की जुदाई की क़ब्र में 
ऐ ख़ुदा! तुमने कभी झाँका है 
तुम्हारी ओर से नाज़ल की गई

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