एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
खोटे बाट 

मज़हब की तेज़ छुरी से 
क़ानून का वध करने वालो 
तुम्हारा कसाई वाला चलन 
अदालत की कुर्सी पर बैठे लोग 
तुम्हारी तराज़ू के पलड़ों में खोट है 
तुम्हारे समूरे बाट खोटे हैं 
तुम जो हमेशा मज़हब के अंधे घोड़े पर सवार 
फ़तह का परचम फहराते रहते हो 
क्या समझते हो? औरत भी कोई रिसायत है 
मैं ऐसे किसी भी ख़ुदा, किसी भी किताब 
किसी भी अदालत, किसी भी तलवार को नहीं मानती 
जो आपसी मतभेद की दुश्मनी में 
छुरी की तरह मेरी पीठ में घोंप दी गई है 
क़ानून की किताबें रटकर डिग्री की उपाधि सजाने वाले 
मेरे वारिस भी तो तुम जैसी मिट्टी के गूँथे हुए हैं 
किसी को रखैल बना लें, रस्म के नाम पर ऊँटनी बना लें 
ग़ैरत के नाम पर ‘कारी’ करके मार दें 
किसी को दूसरी, तीसरी और चौथी बीवी बनाएँ 
तुम्हारी तराज़ू के पलड़े में मैं चुप रहूँ 
ख़ला में झूलती रहूँ 
एक पलड़े में तुम्हारे हाथों ठोकी रीतियों, मज़हब 
जिन्सी मतभेद के रंगीन बाट डाले हैं 
दूसरे पलड़े में मेरे जिस्म के साथ तुम्हें साइन्सी हक़ीक़तें 
मेरी तालीम और शऊर के बाट इस्तेमाल करने होंगे 
तुम्हें अपने फ़ैसले बदलने होंगे! 

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