एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
उड़ने की तमन्ना 

 

ऐ कवि तुम्हारी कविताओं से 
अब उड़ जाने को मन चाहता है 
सदियों से यहाँ 
तुमने मेरा दम घोंट रखा है 
मेरे नारंगी की फाँक जैसे होंठ 
जो सिर्फ़ तेरे चूमने के लिये नज़र किये गये थे 
आज बोलने के लिये इच्छुक हैं 
कहो! तुम्हारे मेरे कैसे नाते हैं 
तुम्हारी कविता की रिसायत में 
मैं तो एक दासी हूँ 
इन्तज़ार में पलकें बिछाए बैठी हूँ 
तुम्हारा वस्ल ही एक चहचहाहट है 
मेरी और कोई ज़िन्दगी नहीं 
इन कारी कजरारी आँखों में 
तुम्हारा ही सपना है 
जिसमें देखूँ अपने आपको 
तुम्हारे दीवान में ऐसा आईना ही नहीं 
मेरे काले बालों में तेरी रात बीते 
लाल गालों से सुबह की उजली किरण फूटे 
पर मेरी चाहत क्या है 
तुम्हारे शब्दकोश में उसका 
कोई भी अर्थ नहीं!

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