एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
प्रीत की रीत 

मैं प्रीत की रीत निभाना जानती हूँ 

तेरे मेरे बीच में 

अगर दरिया होता 

तो पार कर आती 

पहाड़ों के दुश्वार फ़ासले होते 

तो लाँघ आती 

पर यह जो तुमने मेरे लिये 

तंग दिली का क़िला खड़ा किया है 

मसलिहत की छत डाली है 

रीति-रस्मों का रंग पोत दिया है 

फ़रेब का फ़र्श बिछाया है 

लफ्ज़ों की जादूगरी से 

उनको सजाया है 

तुम्हारे उस मकान में 

मैं समा न पाऊँगी! 

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