मेरे पिटारे में खोटा सिक्का डालते हुए
टेड़ी आँख से क्या देखते हो?
मुहब्बत और भूख, दोनों अंधी होती हैं
उनकी डोर तुम्हारे हाथ में है
जैसे चाहो, अपनी उंगली पर नचा सकते हो
मेरी ज़रूरत तुम्हारे पास गिरवी है
सो चाहो तो बबूल की झाड़ी भी खिला सकते हो
बूँद-बूँद ज़हर तमाम उम्र मुझे पिला सकते हो
मुट्ठी भर मुहब्बत एक बार देकर
बाद में ऊँट की तरह कितना भी सफ़र करा सकते हो
नज़रें मिलाते हुए कतराते क्यों हो?
‘दुख’ और ‘इन्तज़ार’ दोनों गहरे होते हैं
और उनकी नब्ज़ तुम्हारे हाथ में है
इसलिये जितना चाहो इलाज में विलम्ब कर सकते हो
चुपचाप नज़रें झुकाकर तुम्हारे पीछे चलती
दुल्हन की बागडोर तुम्हारे बस में है
जहाँ चाहो मोड़ सकते हो।
बेजान मूर्ति की तरह तेरे शोकेस की ज़ीनत बनूँ
मेरे हिस्से का जीवन भी तुम गुज़ारते हो
रोजश् उभरता सूरज मुझे आस बंधाता है
हमेशा ऐसे होने वाला नहीं
आँखों में आँखें डालकर आख़िर तो पूछूँगी
कि ‘मुझे इस तरह क्यों घसीट रहे हो?’
इससे पहले कि मेरी हिम्मत भीतर से नफ़रत बनकर फूटे
आओ तो मिलकर ये समूरे फासले जड़ों से उखाड़ फेंकें
बराबरी की बुनियाद पर नए समाज के बूटे बोयें!
विषय सूची
- प्रस्तावना
- कविता चीख़ तो सकती है
- आईने के सामने एक थका हुआ सच
- अपनी बेटी के नाम
- सफ़र
- ख़ामोशी का शोर
- एक पल का मातम
- सच की तलाश में
- लम्हे की परवाज़
- एक थका हुआ सच
- सपने से सच तक
- तन्हाई का बोझ
- समंदर का दूसरा किनारा
- जज़्बात का क़त्ल
- शोकेस में पड़ा खिलौना
- रिश्ते क्या हैं, जानती हूँ
- सहारे के बिना
- तख़लीक़ की लौ
- काश मैं समझदार न बनूँ
- मन के अक्स
- उड़ान से पहले
- शराफ़त के पुल
- एक अजीब बात
- नया समाज
- प्रीत की रीत
- बेरंग तस्वीर
- प्यार की सरहदें
- मुहब्बतों के फ़ासले
- विश्वासघात
- आत्मकथा
- निरर्थक खिलौने
- शरीयत बिल
- धरती के दिल के दाग़
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- बर्दाश्त
- तुम्हारी याद
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- मुहब्बत की मंज़िल
- ज़ात का अंश
- अजनबी औरत
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- बात-चीत
- ग़ज़ल
-
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
- पुस्तक चर्चा
- बाल साहित्य कविता
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