एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
ख़ामोशी का शोर 

भीड़ में घिरी हुई हूँ मैं 
पर हर तरफ़ खामोशी सदाएँ दे रही है 
इन्सान जैसे पत्थरों की मूर्तियाँ 
मैं उनकी ओर देखती हूँ 
पर पथरीली नज़रें देखना न जानें 
पत्थर वासियों के देश में 
मूर्तियों के मंदिर में 
मैंने कितने घंटे बजाए 
पर हर तरफ़ खामोशी सदाएँ दे रही है 
मेरी सदाएँ गूँज बनकर हवा में तैर रही हैं 
दिल की धड़कन चीख रही है 
सांसों की सर-सर दुहाई दे रही है 
शिराओं में खून यूँ दौड़ रहा है 
जैसे दरिया में गाढ़ा बह रहा हो 
वजूद के भीतर भी यह शोर 
अब तो हवा में घुल मिल गया है 
ख़ामोशी का यह शोर 
मुझे भी कहीं बहरा न कर दे 
हर तरफ़ छाई बेहसी की फिज़ा 
मुझे पत्थर न बना दे! 

 
बेहसी =बिना दबाव के काम
 

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