एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
शरीयत बिल 

मैं तीसरी दुनिया के तरक्क़ी पसंद समाज में 

जहालत के अँधेरे के घने जंगल में 

भटकती हुई पथिक हूँ 

जिस्मानी मतभेद के कसूर में 

क़िलों के भीतर क़ैद की गई हूँ 

ख़ुद को पहचानने की ख़ातिर 

मैंने सदियों से सफ़र किया है 

शरीयत बिल की दावेदारी करके 

आचरण की ज़ंजीरों में दुबारा 

मुझे बांधना चाहते हो 

असेम्बली के सदन में बैठकर 

मकड़ी के जाल जैसा कानून बुनने वालो 

यह कैसे मुमकिन है कि 

मैं तुझे फिर वहीं मिलूँ 

जहाँ चारदीवारी में बंद ऊँची हवेलियों के भीतर 

ख्वाज़ा सराइन के पहरे में 

अपनी तीन बीवियों, व सैंकड़ों कनीज़ों के 

अजायब घर में 

‘मोमी’ की तरह चुप रहने के लिये छोड़ गए थे 

तेरे अत्याचार की तारीख़ का पेट 

इज़राइल के शिकंजे जैसा है 

सदियों से मेरी ख़्वाहिशों और हक़ों का गला घोंटने वाले 

तुम्हारा मन अब भी नहीं भरा? 

ऐ अंधेरे के आशिक! 

तुम्हारी सोच किसी चमड़ी की तरह 

समाज से चिपट गई है

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