एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
ज़िन्दगी


 
ज़िन्दगी दिन-ब-दिन भली लगती जा रही है 
मुट्ठी से रेत की तरह फिसलती जा रही है 
अभी तो बौराये थे उम्मीदों के गुन्चे 
गुलमोहर की तरह ज़िन्दगी झड़ती जा रही है 
ज़िन्दगी इतनी प्यारी जैसे मेरे बालक की मुस्कान 
मेले में छुड़ाकर उँगली मेरी 
ओझल होती जा रही है 
जीने की चाह ने दर्द के समंदर का उत्थान करवाया 
मौत जैसी नींद नैनों में उतरती जा रही है! 

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