हम बड़े शहर के लोग
इज़्ज़त से ज़िन्दगी गुज़ारने की ख़ातिर
‘रोबोट’ की तरह चलते रहते हैं
घर चलाने की ख़ातिर
महँगाई की चक्की में पिसते रहते हैं
घर, जिसके लिये ख़्वाब देखे
उसके पीेछे दौड़ में अपनी नींद गँवा बैठे
प्यार और दूसरे सारे लतीफ़ जज़्बे
जो हमें बेहतर साबित कर सकते हैं
उन्हें हम ड्राइंग रूम में सजाकर रखते हैं
हमारे बतियाये सारे शब्दों की
डेट एक्सपायर हो गई है
नए शब्द हमारे शब्द कोश में
मिस प्रिंट हो गए हैं
हम गूँगों और बहरों की तरह
एक दूसरे की ज़रूरत समझते हैं
जब वह किसी माहिर टाइपिस्ट की तरह
मेरे जिस्म के टाइपराइटर पर
तेज़ी से उँगलियों को हरक़त में लाता है,
तो मैं उसे वही रिज़ल्ट देती हूँ
जो उसकी माँग है!
विषय सूची
- प्रस्तावना
- कविता चीख़ तो सकती है
- आईने के सामने एक थका हुआ सच
- अपनी बेटी के नाम
- सफ़र
- ख़ामोशी का शोर
- एक पल का मातम
- सच की तलाश में
- लम्हे की परवाज़
- एक थका हुआ सच
- सपने से सच तक
- तन्हाई का बोझ
- समंदर का दूसरा किनारा
- जज़्बात का क़त्ल
- शोकेस में पड़ा खिलौना
- रिश्ते क्या हैं, जानती हूँ
- सहारे के बिना
- तख़लीक़ की लौ
- काश मैं समझदार न बनूँ
- मन के अक्स
- उड़ान से पहले
- शराफ़त के पुल
- एक अजीब बात
- नया समाज
- प्रीत की रीत
- बेरंग तस्वीर
- प्यार की सरहदें
- मुहब्बतों के फ़ासले
- विश्वासघात
- आत्मकथा
- निरर्थक खिलौने
- शरीयत बिल
- धरती के दिल के दाग़
- अमर गीत
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- बर्दाश्त
- तुम्हारी याद
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- बात-चीत
- ग़ज़ल
-
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
- पुस्तक चर्चा
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
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- उस शिकारी से ये पूछो
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- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
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