ऐ ख़ुदा, मुझे इतनी हिम्मत दे
कि ग़ुलामी के लेबल, जिसे प्यार समझकर
गले में पहनकर, मदारी की डुगडुगी
पर नाचती हूँ
वह उतार कर फेंक दूँ
राणा, जो लौटने वाला नहीं
फूँक मारकर उस दिये को बुझा दूँ
मशाल जलाकर, अँधेरे को चीरकर
अपना रास्ता ढूँढकर
आगे, बहुत आगे मैं बढ़ जाऊँ
मूमल की अक्लमंदी ने
अगर काक महल फिर से जोड़ा भी तो
पर मैं अपना हुस्न गँवा बैठी हूँ
अब किसी भी जादू से खिंचा
कोई भी राजा यहाँ आने वाला नहीं
वक़्त की बाढ़ सब बहा गई
अब तो मेरी झोली भी ख़ाली है
ऐ ख़ुदा, मुझे इतनी हिम्मत दे
कि मूमल के सहारे के बिना
अपने हाथों से तिनके चुनकर झोंपड़ी बनाऊँ
ये आँखें
राणे के लिये मुंतज़िर हुई हैं
उन्हें इतना समय दे
कि दुनिया में जहाँ कहीं भी
ज़ुल्म और जबर के तहत कोई रोए
वे सभी आँसू अपनी आँखों में समा पाऊँ
इन हाथों को इतना तो बड़ा करो
कि सैकड़ों मशालें जलाकर चलती रहूँ
दुनिया में जहाँ भी अँधेरा है
वहाँ रोशनी की किरणें फैलाती रहूँ!
विषय सूची
- प्रस्तावना
- कविता चीख़ तो सकती है
- आईने के सामने एक थका हुआ सच
- अपनी बेटी के नाम
- सफ़र
- ख़ामोशी का शोर
- एक पल का मातम
- सच की तलाश में
- लम्हे की परवाज़
- एक थका हुआ सच
- सपने से सच तक
- तन्हाई का बोझ
- समंदर का दूसरा किनारा
- जज़्बात का क़त्ल
- शोकेस में पड़ा खिलौना
- रिश्ते क्या हैं, जानती हूँ
- सहारे के बिना
- तख़लीक़ की लौ
- काश मैं समझदार न बनूँ
- मन के अक्स
- उड़ान से पहले
- शराफ़त के पुल
- एक अजीब बात
- नया समाज
- प्रीत की रीत
- बेरंग तस्वीर
- प्यार की सरहदें
- मुहब्बतों के फ़ासले
- विश्वासघात
- आत्मकथा
- निरर्थक खिलौने
- शरीयत बिल
- धरती के दिल के दाग़
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- ग़ज़ल
-
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
- पुस्तक चर्चा
- बाल साहित्य कविता
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