एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
सहारे के बिना

ऐ ख़ुदा, मुझे इतनी हिम्मत दे 
कि ग़ुलामी के लेबल, जिसे प्यार समझकर 
गले में पहनकर, मदारी की डुगडुगी 
पर नाचती हूँ 
वह उतार कर फेंक दूँ 
राणा, जो लौटने वाला नहीं 
फूँक मारकर उस दिये को बुझा दूँ 
मशाल जलाकर, अँधेरे को चीरकर 
अपना रास्ता ढूँढकर 
आगे, बहुत आगे मैं बढ़ जाऊँ 
मूमल की अक्लमंदी ने 
अगर काक महल फिर से जोड़ा भी तो 
पर मैं अपना हुस्न गँवा बैठी हूँ 
अब किसी भी जादू से खिंचा 
कोई भी राजा यहाँ आने वाला नहीं 
वक़्त की बाढ़ सब बहा गई 
अब तो मेरी झोली भी ख़ाली है 
ऐ ख़ुदा, मुझे इतनी हिम्मत दे 
कि मूमल के सहारे के बिना 
अपने हाथों से तिनके चुनकर झोंपड़ी बनाऊँ 
ये आँखें 
राणे के लिये मुंतज़िर हुई हैं 
उन्हें इतना समय दे 
कि दुनिया में जहाँ कहीं भी 
ज़ुल्म और जबर के तहत कोई रोए
वे सभी आँसू अपनी आँखों में समा पाऊँ 
इन हाथों को इतना तो बड़ा करो 
कि सैकड़ों मशालें जलाकर चलती रहूँ 
दुनिया में जहाँ भी अँधेरा है 
वहाँ रोशनी की किरणें फैलाती रहूँ! 

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