आज मेरे आँगन पर
सूरज सवा नेज़े पर उतर आया है
धरती मेरे दिल की तरह झुलस गई है
मेरी नहीं बिटिया के मुँह से चूसनी छीनकर
कोई शैतान, कायनात का दर्द उँडेल गया है
मैंने किसी के साथ जंग का ऐलान तो नहीं किया था
फिर क्यों करबला का किस्सा दोहराया गया है
अदालत की कुर्सी पर जज सबके बयान सुन रहा है
अपराधियों के कटघरे में खड़े हैवान के आगे
मैंने अपनी छातियाँ काट कर फेंकी हैं
मुझसे हमदर्दी करने वाले दर्दमंद इन्सानों
मुझे फश्कश्त लफ़्जों की एक ऐसी मुट्ठी दो
कि मेरे होंठ वह बोली बोल पाएँ
जो हवस के तीरों से घायल
मेरी दूध पीती बच्ची, ख़्वाब में मुस्करा सके
मैं उसे चूमती हूँ
तो वह नींद से चीखकर उठ जाती है
यह मेरी मासूम पर कैसी वेदना ढाई है
कि बाप की चौड़ी छाती और
ममता के आगोश में भी
वह चीरे हुए मुर्गे की तरह तड़प उठती है
मेरे मुलक के कानून का खोटा सिक्का
क्या मुझे वह खिलौना दे सकेगा
जिससे यातना के अंगारों पर
सोई हुई बेटी को बहला सकूँ
ऐ ख़ुदा! जब मैं तेरी अदालत में
बेटी के बेकार खिलौने
और खून में डूबी चड्डी ले आऊँगी
तो इन्साफ के तराज़ू के दूसरे पलड़े में
कहो, तुम क्या डालोगे?
मासूम बच्चियों के रेप पर लिखी।
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