एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
जख़्मी वक़्त 

चीख बनकर गले से निकलना चाहती हूँ 
आँसुओं की तरह वक़्त की आँखों से बहना चाहती हूँ 
खौफ़ की छुरी से मांस को दिये गए चीर 
महँगाई की चुटकी से नमक छिड़कना 
सिसकी बनकर सहमे हुए चेहरों के सीने से निकलना चाहती हूँ 
माँओं की गोद में कटे हुए शीश 
गमज़दा आँगनों में बेवाओं की टूटी चूड़ियाँ 
करबला की धरती के समान चटकना चाहती हूँ 
क़ब्र में क़त्ल हुए पिता की बे-आराम हड्डियाँ 
जेल में बेगुनाह बेटे की आशावादी आँखें 
कराची की कोख से ख़ंजर निकालना चाहती हूँ! 

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