एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
मुहब्बत की मंज़िल 

ऐसे तो न छेड़ो, मेरे जिस्म के तंबूरे को 
जैसे कोई बच्चा मस्ती कर रहा हो 
मेरा जिस्म कोई राज़ तो नहीं 
जिसकी दरियाफ़्त करने के लिये 
किसी नक़्शे की ज़रूरत है 
और वह अलजेब्रा का सवाल भी नहीं 
जिसके लिये पहले से ही फ़ॉर्मूला तैयार हो 
इस साज़ को छेड़ने के लिए कोई भी तरकीब 
दुनिया की किसी भी किताब में दर्ज नहीं है 
यह साज़ तो ख़ुद ही बजने लगेगा 
अगर तुम्हारे नयन प्यार के दीप बनकर जल उठें 
तुम्हारी उँगलियों के पोर 
मेरे जिस्म पर यूँ सफ़र करते हैं 
जैसे कोई बर्फ़ीले पहाड़ की चोटी पर 
फ़तह का झंडा फहराना चाहता है 
बर्फ़ का पहाड़ पिघलने लगेगा 
अगर तुम्हारे हाथ मेरे पंख बनकर 
मुझे मुहब्बत की मंज़िल की ओर उड़ा ले जायें! 

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