एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
चाँद की तमन्ना 

जुदाई मंज़िल है जिसकी 
इश्क़ की उन पेचीदा पगडंडियों पर 
दुबारा चलने को जी चाहता है 
ज़िन्दगी के इस मोड़ पर 
सभी ख़ुशियाँ हैं मेरी झोली में 
सुकून की इस माला को 
दुबारा बिखेरने को जी चाहता है 
वक़्त ने यादों के ज़ख़्मों पर 
कड़ियाँ बाँध दी हैं 
उन्हें अपने ही नाखूनों से 
कुरेदने को जी चाहता है 
कितने ही बरस लगे थे 
हक़ीकतों को जानने में 
आज फिर पेड़ पर चढ़कर 
चाँद तोड़ने को जी चाहता है! 

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