एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
एक थका हुआ सच 

सच मेरी तख़लीक की बुनियाद है 
उसके नाम पर मेरा वजूद 
जितनी बार भी टुकड़े-टुकड़े किया गया है 
‘अमीबा’ की तरह कटे हुए वजूद का हर हिस्सा 
खुद एक वजूद बन गया है 
जितनी बार भी सच के सलीब पर 
मेरे वजूद को चढ़ाया गया है 
मैंने एक नये जन्म का लुत्फ़ उठाया है 
पर हर बार के अन्त और उपज ने 
मुझे थका दिया है 
ऐ साथी, मैं चाहती हूँ 
कि मेरी गर्दन से तुम यह लेबिल उतारो 
अपनी आँखों में झूठा प्यार सजाकर 
मेरे सामने आओ 
कानों में झूठी प्यार भरी सरगोशियाँ करो 
’मुनाफ़क़त की ज़ंजीरे 
कंगन बनाकर मुझे पहनाओ 
इतनी मक्कारी से मुझे प्यार करो 
कि रूह बर्दाश्त न कर पाए 
और तड़पकर मेरे वजूद से आज़ाद हो जाए! 


मुनाफ़क़त=पाखंड 

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