सच मेरी तख़लीक की बुनियाद है
उसके नाम पर मेरा वजूद
जितनी बार भी टुकड़े-टुकड़े किया गया है
‘अमीबा’ की तरह कटे हुए वजूद का हर हिस्सा
खुद एक वजूद बन गया है
जितनी बार भी सच के सलीब पर
मेरे वजूद को चढ़ाया गया है
मैंने एक नये जन्म का लुत्फ़ उठाया है
पर हर बार के अन्त और उपज ने
मुझे थका दिया है
ऐ साथी, मैं चाहती हूँ
कि मेरी गर्दन से तुम यह लेबिल उतारो
अपनी आँखों में झूठा प्यार सजाकर
मेरे सामने आओ
कानों में झूठी प्यार भरी सरगोशियाँ करो
’मुनाफ़क़त की ज़ंजीरे
कंगन बनाकर मुझे पहनाओ
इतनी मक्कारी से मुझे प्यार करो
कि रूह बर्दाश्त न कर पाए
और तड़पकर मेरे वजूद से आज़ाद हो जाए!
मुनाफ़क़त=पाखंड
विषय सूची
- प्रस्तावना
- कविता चीख़ तो सकती है
- आईने के सामने एक थका हुआ सच
- अपनी बेटी के नाम
- सफ़र
- ख़ामोशी का शोर
- एक पल का मातम
- सच की तलाश में
- लम्हे की परवाज़
- एक थका हुआ सच
- सपने से सच तक
- तन्हाई का बोझ
- समंदर का दूसरा किनारा
- जज़्बात का क़त्ल
- शोकेस में पड़ा खिलौना
- रिश्ते क्या हैं, जानती हूँ
- सहारे के बिना
- तख़लीक़ की लौ
- काश मैं समझदार न बनूँ
- मन के अक्स
- उड़ान से पहले
- शराफ़त के पुल
- एक अजीब बात
- नया समाज
- प्रीत की रीत
- बेरंग तस्वीर
- प्यार की सरहदें
- मुहब्बतों के फ़ासले
- विश्वासघात
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-
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
- पुस्तक चर्चा
- बाल साहित्य कविता
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