एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
सपने से सच तक

रात के जुगनू को पकड़ कर 
बोतल में बंद करके 
सुबह उसे परखने का खेल 
मैंने ख़त्म कर दिया है 
मेरी कहानी जहाँ ख़त्म हुई 
वहीं मेरी सोच का सफ़र शुरू हुआ है 
पहला शब्द ‘आगषूं-आगषूं’ उच्चारा था 
तो भीतर की सारी पीड़ा अभिव्यक्त की 
आज भाषा पर दक्षता हासिल करने के बावजूद भी 
गूंगी बनी हुई हूँ 
तुम्हारा कशकोल देखकर 
अपनी मुफ़लिसी का अहसास होता है 
बेशक देने वाले से लेने वाले की 
झोली वसीह होती है 
यह राज़ मुझे समंदर ने बताया है! 

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