रात के जुगनू को पकड़ कर
बोतल में बंद करके
सुबह उसे परखने का खेल
मैंने ख़त्म कर दिया है
मेरी कहानी जहाँ ख़त्म हुई
वहीं मेरी सोच का सफ़र शुरू हुआ है
पहला शब्द ‘आगषूं-आगषूं’ उच्चारा था
तो भीतर की सारी पीड़ा अभिव्यक्त की
आज भाषा पर दक्षता हासिल करने के बावजूद भी
गूंगी बनी हुई हूँ
तुम्हारा कशकोल देखकर
अपनी मुफ़लिसी का अहसास होता है
बेशक देने वाले से लेने वाले की
झोली वसीह होती है
यह राज़ मुझे समंदर ने बताया है!
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-
- अब ख़ुशी की हदों के पार हूँ मैं
- उस शिकारी से ये पूछो
- चढ़ा था जो सूरज
- ज़िंदगी एक आह होती है
- ठहराव ज़िन्दगी में दुबारा नहीं मिला
- बंजर ज़मीं
- बहता रहा जो दर्द का सैलाब था न कम
- बहारों का आया है मौसम सुहाना
- भटके हैं तेरी याद में जाने कहाँ कहाँ
- या बहारों का ही ये मौसम नहीं
- यूँ उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
- वक्त की गहराइयों से
- वो हवा शोख पत्ते उड़ा ले गई
- वो ही चला मिटाने नामो-निशां हमारा
- ज़माने से रिश्ता बनाकर तो देखो
- अनूदित कविता
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