एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
एक पल का मातम

साथी अलविदा! 
यहाँ से हो गए जुदा 
तुम्हारे और मेरे रास्ते 
दोस्त, मेरा हाथ न छोड़ो 
यह कैसे मुमकिन है, कि 
तुम और मैं विपरीत दिशाओं में जाएँ 
और मेरा हाथ तुम्हारे हाथ में रहे? 
इतनी लम्बी तो मेरी बांह नहीं! 
मैं पीछे मुड़कर कब तक तुम्हें देखती रहूँगी 
तेरे-मेरे सफ़र में पहाड़ भी तो आएँगे 
पहाड़ को चीरकर तुम तक पहुँचे 
इतनी तेज़ तो मेरी नज़र नहीं! 
तुम्हें कब तक मैं पुकारूँगी 
कैसे पहुँचेगी तुम तक मेरी आवाज़ 
गूँज बनकर मेरे पास लौट आएगी, 
हवा की लहरों पर तो मेरा इख़्तियार नहीं 
इस पल की यातना से कौन इन्कार करेगा 
मुझे इस पल का मातम मनाने दो 
आने वाले पल में यह पल 
एक दौर बन जायेगा 
एक पल से दूसरे पल तक 
तुम्हारे और मेरे बीच में 
एक दौर का फासला होगा 
वक़्त की धारा को वापस मोड़ना मेरे बस में तो नहीं!     

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