एक थका हुआ सच

एक थका हुआ सच  (रचनाकार - देवी नागरानी)

(अनुवादक: देवी नागरानी )
शोकेस में पड़ा खिलौना 

मुझे गोश्त की थाली समझकर 
चील की तरह झपटे मारो 
उसे प्यार समझूँ 
इतनी भोली तो मैं नहीं! 
 
मुझसे तुम्हारा मोह ऐसा 
जैसे बिल्ली का मांस छेछड़े से 
उसे प्यार समझूँ 
इतनी भोली तो मैं नहीं! 
 
मेरे जिस्म को खिलौना समझकर 
चाहो तो खेलो, चाहो तो तोड़ दो 
उसे प्यार समझूँ 
इतनी भोली तो मैं नहीं। 
 
मैं तुम्हारे शो-केस में पड़ी गुड़िया 
कितनी भी तुम तारीफ़ करो 
उसे प्यार समझूँ 
इतनी भोली तो मैं नहीं! 
 
रीतियों ने नायिका बनकर मुझे वेश्या बनाया, 
तुम्हारी ख़्वाहिशों के चकले पर है नचाया 
उसे प्यार समझूँ 
इतनी भोली तो मैं नहीं! 
 
कायनात के हर राज़ पर सोच सकती हूँ 
तुम्हारे मनोरंजन के लिये बख्शी गई हूँ 
इसे सच समझूँ 
इतनी भोली तो मैं नहीं! 
 
सुसई बनकर पहाड़ उलांघूँ 
प्यार क्या है, जानती हूँ 
सोहनी बनकर दरिया में गोता लगाऊँ 

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